चुनाव के मौसम आते ही आजी माजी वह भावी नगर सेवक जनता के पास आते हैं वोटो की भीख मांगने

शैख़ जमील मुख्य संपादक शब्द की गूंज
By -
0

चुनाव आते ही हर गली हर नुक्कड़ पर अचानक आजी माजी वह भावी नगर सेवक व समाजसेवकों की भीड़ बढ़ जाती है
हाथ जोड़कर सलाम मीठी बातें और “जनसेवा के बड़े-बड़े वादे...
जैसे पूरा शहर रातों-रात खिदमतगारी से भर गया हो
लेकिन सवाल ये है 
इन को पिछले 9 सालों से नींद आ गई थी
अगर समाजसेवा चुनाव की शर्त पर करनी है तो वो सेवा नहीं सियासत का सौदा है
 मलकापुर नगर परिषद के चुनाव साल बीत आ रहे हैं 
इन नौ सालों में नागरिकों ने न जाने कितनी बार नगर परिषद और तहसील के दफ्तरों के चक्कर लगाए 
कभी जन्म प्रमाणपत्र के लिए, कभी मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए
सबसे ज़्यादा तकलीफ़ महिलाओं को उठानी पड़ती है
अधिकारी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं
और उनके व्यवहार में ऐसा अहंकार झलकता है
जैसे वो जनता की सेवा के लिए नहीं, राज करने के लिए बैठे हों सवाल ये नहीं कि आप चुनाव लड़ेंगे या नहीं  सवाल ये है कि आपने किया क्या
जो लोग आज खुद को भावी नगर सेवक” बताते हैं उनसे जनता को सीधा सवाल पूछना चाहिए
इन नौ सालों में आपने नागरिकों के लिए क्या किया
कितनी बार आपने किसी महिला या बुज़ुर्ग का काम किए हैं 
सेल्फ़ी और पोस्ट से समाजसेवा नहीं होती  सेवा नीयत से होती है
असली समाजसेवक वही, जो बिना पद और स्वार्थ के सेवा करे
समाजसेवा के लिए कुर्सी की नहीं, दिल की ज़रूरत होती है
हमारा संविधान हर नागरिक को सेवा करने का अधिकार देता है
जो व्यक्ति बिना स्वार्थ, बिना प्रचार, और बिना सत्ता के लोगों की मदद करता है 
वही असली समाजसेवक है
लोकतंत्र सिर्फ़ वोट देने का नहीं, ज़िम्मेदारी निभाने का नाम है
चुनाव के वक्त तो बिना कहे भी काम होने लगते हैं,
लेकिन असली परख तब होती है जब चुनाव नहीं है
अब वक्त है कि जनता पहचान करे कि कौन सेवा करता है और कौन सिर्फ़ मौसम देखकर मैदान में उतरता है
शहर की असली तरक्की
शहर तब आगे बढ़ेगा जब सेवा चुनावी मंच से नहीं, जनता के बीच से शुरू होगी
अगर हर नागरिक अपने स्तर पर मदद करने लगे,
तो फिर इन “मौसमी समाजसेवकों” की कोई ज़रूरत ही नहीं रहेगी चुनाव आते ही सबको जनता याद आती है
गलियों में फिर झूठी मुस्कान बिखराती है
सेवा अगर कुर्सी के लिए करना है तुम्हें
तो वो सेवा नहीं बस सियासत है कहलाती है

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)