मलकापुर शहर में नगर परिषद के चुनाव जैसे जैसे नज़दीक आ रहे हैं
वैसे वैसे हर गली–मोहल्ले से नए नेता उभरते दिखाई दे रहे हैं
लेकिन जब जनता को असली मदद की ज़रूरत होती है
तो वही नेता नदारद नज़र आते हैं
आज भी नगर परिषद के दफ्तर में कई महिलाएँ और बुज़ुर्ग
अपने छोटे जालम दाख़िलों के काम के लिए सुबह से शाम तक लाइन में बैठे रहते हैं
लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं
बरसात और तूफ़ान में जिन परिवारों का नुकसान हुआ
उन्हें आज तक मुआवज़े की रकम नहीं मिली
और नेताओं को वहाँ जाने की फुरसत नहीं है
फिर भी चुनाव का ऐलान होते ही
हर गली में मैं भी उम्मीदवार कहने वालों की भीड़ लग गई है
जिन्होंने अब तक अपने मोहल्ले का एक नाला साफ़ नहीं करवाया
वो भी आज शहर की तस्वीर बदलने की बातें कर रहे हैं
यह हक़ीक़त है कि चुनाव लड़ने का अधिकार सबको है
मगर सवाल यह है कि क्या सिर्फ़ कुर्सी का शौक़ काफी है, या जनता की सेवा का जज़्बा भी होना चाहिए
क्योंकि जो अपने घर की ज़िम्मेदारी नहीं निभा सकता
वो शहर की ज़िम्मेदारी कैसे उठाएगा
मलकापुर की जनता अब सब समझ चुकी है
वो अब बरसाती नेताओं को नहीं
बल्कि सच्चे खिदमतगारों को तलाश रही है
