आना मेरी पस्ती में नहीं है किसी की जी हुजूरी में नहीं है वह अपने को बड़ा गिनने लगा है जो अभी खुद भी गिनती में नहीं है

शैख़ जमील मुख्य संपादक शब्द की गूंज
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मलकापुर शहर की पत्रकारिता अब खबरों की नहीं, बल्कि "कमर्शियल धंधे" की पहचान बनती जा रही है। यहां अखबार जनता की समस्याओं और सच्चाई को सामने लाने के लिए नहीं, बल्कि जन्मदिन के बधाई संदेशों और नेताओं की खुशामद के लिए छप रहे हैं
स्थिति यह है कि कुछ अखबार तो "डी-ब्लॉक" होने के बाद भी बाजार में बेखौफ निकल रहे हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसे अखबारों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्या नियम-कानून सिर्फ आम जनता के लिए हैं और "कमर्शियल पत्रकारिता" के ठेकेदारों पर लागू नहीं होते?
पत्रकारिता का धर्म है – जनता की आवाज़ बनना। लेकिन मलकापुर में तो यह धर्म अब विज्ञापन, बर्थडे ग्रीटिंग और नेताओं की चापलूसी के पन्नों में दबकर रह गया है। जनता की आवाज़, समस्याएं और मुद्दे इन पन्नों पर कहीं नजर नहीं आते।
अब जनता पूछ रही है – क्या पत्रकारिता बिक चुकी है? क्या खबरें सच बोलेंगी या फिर नोटों और बधाई संदेशों में डूबकर हमेशा के लिए गुम हो जाएंगी?
👉 मलकापुर की जनता को अब ऐसे सवालों का जवाब चाहिए, वरना "कमर्शियल न्यूज़" की यह बीमारी पूरे लोकतंत्र की सेहत खराब कर देगी।

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