मलकापुर
साल 2016 के बाद से ईद मिलादुन्नबी का जुलूस बंद है बताया जाता है कि उस समय कुछ असामाजिक तत्वों ने माहौल बिगाड़ने और दो समाज में तनाव फैलाने की कोशिश की थी, जिसके चलते प्रशासन ने एहतियातन जुलूस पर रोक लगा दी थी
अब वर्षों बाद कुछ राजनीतिक दल और नेता इस मुद्दे को उठाकर जुलूस निकालने की मांग कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या यह समाज की भलाई के लिए है या फिर राजनीति चमकाने का नया हथकंडा?
ईद मिलादुन्नबी का मतलब यह है कि हमारे परफेक्ट मोहम्मद पैगंबर साहब का संदेश आम लोगों तक पहुंचाना वह सिर्फ मुसलमान के लिए नहीं बल्कि उन्हें रहमतुल्ला अलामिन कहा गया है वह पूरी दुनिया के लिए रहमत बनकर आए थे ईद मिलादुन्नबी का मतलब है अमन वह शांति मोहब्बत वह एक लाख आम लोगों के सामने पेश करना लेकिन यहां पर कुछ नौजवान कपड़े उतार कर नाचते हैं डीजे पर नाचते हैं दारू पीते हैं क्या यही ईद मिलादुन्नबी मानना है ईद मिलादुन्नबी अगर मानना है तो मीठा बनाओ गरीबों को खाना खिलाओ मिलाद शरीफ पढ़ाओ नमाजे पढ़ो इबादत करो लेकिन यहां तो राजनेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए आम जनता को बारगैलन में लगे हैं
जहां एक ओर गरीब और मजबूर लोग जालम दाखिले के नाम पर दर-दर भटक रहे हैं, रोजगार और शिक्षा की समस्याएं सामने खड़ी हैं, वहीं नेताओं की नज़रें सिर्फ अपने वोट बैंक और राजनीति पर टिकी दिखाई देती हैं
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि पहले समाज की समस्याओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए, लोगों को न्याय और सुविधा मिले, उसके बाद ही ऐसे आयोजनों की बात होनी चाहिए। केवल राजनीति के लिए धार्मिक जुलूसों को हवा देना राजकरनी लोगों का हथकंडा हो सकता है
ईद मिलादुन्नबी का जुलूस समाज की धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसे राजनीति का माध्यम बनाना समाज और शहर दोनों के लिए घातक साबित हो सकता हैजनता चाहती है कि राजनीति से ऊपर उठकर समाज की वास्तविक समस्याओं का हल निकाला चाहिए आज हर घर में लीडर पैदा हो गए हैं लेकिन समाज के मुद्दे कोई उठाने के लिए तैयार नहीं है ना ही जन्म दाखिलों के आदेश पर कोई बोलने के लिए तैयार है और ना ही समाज की समस्याओं को लेकर किसी को फिक्र है ऐसी भी मलकापुर शहर में चर्चा चल रही है
